सोमवार, 28 फ़रवरी 2011

मुकम्मल जहाँ ...एक क्षणिका ...


मैंने कब मुकम्मल जहाँ माँगा?
जानती हूँ नही मिलता!
मेरी जुस्तजू ना मुमकिन नहीं !
अरे पैर रखनेको ज़मीं चाही,
माथे पर   एक टुकडा आसमाँ,
पूरी दुनिया तो नही माँगी?


शनिवार, 19 फ़रवरी 2011

ख्वाबोंकी रह्गुज़र

खादी सिल्क के कपडे पे पहले जल रंगों  से रंग  भर दिया और ऊपर से कढाई कर दी.रास्तेका जो रंग है,वही कपडेका मूल रंग था.

हक़ीक़त की बंजर डगर से,
आओ ज़रा-सा  हटके चलें,
चलो ,ले चलूँ हँसी नज़ारों में,
ख्वाबोंकी शत रंगी रह्गुज़रमे!
छाँव घनेरी ,धूप प्यारी  सुनहरी,
दूर के उजालों की सुने सदाए,
उलझा लो दामन को सपनों से,
चले जाना जब असलियत बुलाये!

मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

क्यों बसंत रूठा?



ऊन तथा रेशम के सूत से ये भित्ती चित्र मैंने बनाया है.

शोर उठा था नगर में,
आया है बसंत पूरी बहर में, 
हमने भी सजाई क्यारियाँ,
सुन परिंदों की किलकारियाँ! 
जाने क्या बात हुई,क्या  हुई ख़ता ,
मेरी छोड़ सब की फूलीं फुलवारियाँ! 
मुझ से ही  क्यों बसंत रूठा,
क्यों हुई मेरी  रुसवाईयाँ?
तब से आहें भरना छोड़ दिया,
किस आह की सुनवाई यहाँ?




गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011

चश्मे नम मेरे....










परेशाँ हैं, चश्मे नम मेरे,

कि इन्हें, लमहा, लमहा,

रुला रहा है कोई.....



चाहूँ थमना चलते, चलते,

क़दम बढ्तेही जा रहें हैं,

सदाएँ दे रहा है कोई.....




अए चाँद, सुन मेरे शिकवे,

तेरीही चाँदनी बरसाके,

बरसों, जला रहा कोई......





शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2011

यादें....एक शाम की!

चंद यादें अपने ब्लॉगर दोस्तों से साझा किये बिना रहा नही गया!ये तसवीरें हैं २० जनवरी की एक शाम की. मौक़ा है मेरे बेटे की शादी का स्वागत समारोह.वैसे ब्याह १५ जनवरी को हुआ.
सबसे पहली तसवीर,बाएं से दायें,मेरी (क्षमा, गुलाबी साड़ी में ) तथा मेरी जेठानी जी की.
बाएं से दायें,बंद गलेके सूट में,वर-पिता(मेरे पति!),बेटा,बहू,तथा मै.
चंद दोस्तों के साथ,हम दोनों तथा वधू-वर.
फिर एकबार कुछ अज़ीज़ दोस्तों के साथ,हम दोनों और वधू-वर.
बाएं से दाए,मेरे भाई का बेटा, भाभी,वधू,वर,मै और मेरा भाई.
कुछ परिवारवाले और कुछ अज़ीज़ दोस्त.

वर और वधू.प्रेम विवाह है और दोनों टेलिकॉम कंपनी में कार्यरत हैं.फिलहाल दो अलग,अलग शहरों में!
आप सभी के शुभाशीष की   आशा करती हूँ!