बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

दीवारें बोलती नही..


क्षमा प्रार्थी हूँ,की, एक पुरानी रचना पेश कर रही हूँ....!


खादी सिल्क से दीवारें तथा रास्ता बनाया है..क्रोशिये की बेलें हैं..और हाथसे काढ़े हैं कुछ फूल-पौधे..बगीचे मे रखा statue plaster ऑफ़ Paris से बनाया हुआ है..

 सुना ,दीवारों  के  होते  हैं  कान ,
काश  होती  आँखें और लब!
मै इनसे गुफ्तगू   करती,
खामोशियाँ गूंजती हैं इतनी,
किससे बोलूँ? कोई है ही  नही..

आयेंगे हम लौट के,कहनेवाले,
बरसों गुज़र गए , लौटे नही ,
जिनके लिए उम्रभर मसरूफ़ रही,
वो हैं  मशगूल जीवन में अपनेही,
यहाँ से उठे डेरे,फिर बसे नही...

सजी बगिया को ,रहता है  फिरभी,
इंतज़ार क़दमों की आहटों का,
पर  कोई राह इधर मुडती नही ,
पंखे की खटखट,टिकटिक घड़ी की,
अब बरदाश्त मुझसे होती नही...


मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012

मुझ संग खेलो होली...



कहाँ हो?खो गए हो?
अपने आसमाँ के लिए,
पश्चिमा रंग बिखेरती देखो,
देखो, नदियामे भरे
सारे रंग आसमाँ के,
किनारेपे रुकी हूँ कबसे,
चुनर बेरंग है कबसे,
उन्डेलो भरके गागर मुझपे!
भीगने दो तन भी मन भी
भाग लू आँचल छुडाके,
तो खींचो पीछेसे आके!
होती है रात, होने दो,
आँखें मूँदके मेरी, पूछो,
कौन हूँ ?पहचानो तो !
जानती हूँ , ख़ुद से बातें
कर रही हूँ , इंतज़ार मे,
खेल खेलती हूँ ख़ुद से,
हर परछायी लगे है,
इस तरफ आ रही हो जैसे,
घूमेगी नही राह इस ओरसे,
अब कभी भी तुम्हारी
मानती नही हूँ,जान के भी..
हो गयी हूँ पागल-सी,
कहते सब पडोसी...
चुपके से आओ ना,
मुझ संग खेलो होली ...

शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

चश्मे नम

परेशाँ हैं, चश्मे नम मेरे,

कि इन्हें, लमहा, लमहा,

रुला रहा है कोई.....



चाहूँ थमना चलते, चलते,

क़दम बढ्तेही जा रहें हैं,

सदाएँ दे रहा है कोई.....




अए चाँद, सुन मेरे शिकवे,

तेरीही चाँदनी बरसाके,

बरसों, जला रहा कोई......