बुधवार, 22 अगस्त 2012

किसीके लिए मैं हकीकत नही तो ना सही !

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ये   लिंक्स  हैं मेरे कुछ ब्लोग्स के।इन ब्लोग्स पे किसी बेहद दर्दनाक घटना के कारन मैंने लेखन बंद कर दिया था।   आपकी सुविधाके लिए  ये लिंक्स  यहाँ दे दिए हैं।आपलोग जब चाहें खोलके देख सकते है।

किसीके लिए मैं हकीकत नही
तो ना सही !
हूँ  मेरे माज़ी की परछायी    ,
चलो वैसाही सही !
जब ज़मानेने मुझे
क़ैद करना चाहा
मैं बन गयी एक साया,
पहचान  मुकम्मल मेरी
कोई नही तो ना सही !
रंग मेरे कयी
रुप बदले कयी
किसीकी हूँ  सहेली,
किसीके लिए पहेली
हूँ  गरजती बदरी
या किरण धूपकी
मुझे छू ना पाए कोई,
मुट्ठीमे बंद करले
मैं वो खुशबू नही.
जिस राह्पे हूँ  निकली
वो निरामय हो मेरी
इतनीही तमन्ना है.
गर हो हासिल मुझे
बस उतनीही जिन्दगी
जलाऊं  अपने हाथोंसे
झिलमिलाती शमा
झिलमिलाये जिससे
एक आंगन,एकही जिन्दगी.
रुके एक किरण उम्मीद्की
कुछ देरके लियेही सही
शाम तो है होनीही
पर साथ लाए अपने
एक सुबह खिली हूई
र्हिदय मेरा ममतामयी
मेरे दमसे रौशन वफा
साथ थोड़ी बेवफाई भी,
कई सारे चेहरे  मेरे,
ओढ़े कयी नकाब भी
अस्मत के  लिए मेरी
था ये भी ज़रूरी
पहचाना मुझे?
मेरा एक नाम तो नही...


8 टिप्‍पणियां:

शारदा अरोरा ने कहा…

bahut khoob...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

अपने को पहचाना, अपनी आँखों में,
ढूढ़ रहा क्यों अनजाने उन लाखों में।

सदा ने कहा…

भावमय करते शब्‍दों के साथ ... उत्‍कृष्‍ट लेखन ...आभार

Rishi ने कहा…

hamesha ki tarah bahut hi sundar rachna...fir ek baar chupa hua dard thoda sa bahar ris k nikla hai in panktiyon me...!!

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत मर्मस्पर्शी और उत्कृष्ट प्रस्तुति..

Arvind Mishra ने कहा…

क्या कहूं -वही समझिये जो पिछले तमाम पोस्ट पर आपके मैंने लिख दिए हैं!

प्रेम सरोवर ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।

Naveen Mani Tripathi ने कहा…

bahut hi prabhavshali prastuti kshama ji ......hardik badhai sweekaren