बुधवार, 28 अगस्त 2013

इन पहाड़ों से

अचानक ख़याल आया ,ये इस ब्लॉग परकी १००वी पोस्ट है!

.रेशमके कपडेपे water कलर, उसके ऊपर धुंद दिखानेके लिए शिफोनका एक layer ....कुछ अन्य रंगों के तुकडे, ज़मीन, पहाड़, घान्सफूस, दिखलाते है...इन कपडों पे कढाई की गयी है...
इन  पहाड़ों से ,श्यामली  घटाएँ,
जब,जब गुफ्तगू करती हैं,  
धरती पे  हरियाली छाती है,
हम आँखें मूँद लेते हैं..
हम आँखें मूँद लेते हैं...

उफ़! कितना सताते हैं,
जब याद आते है,
वो दिन कुछ भूले,भूले-से,
ज़हन में छाते जाते हैं,
ज़हन में छाते जाते हैं...

जब बदरी के तुकडे मंडरा के,
ऊपर के कमरे में आते हैं,
हम सीढ़ियों पे दौड़ जाते है,
और झरोखे बंद करते हैं,
 झरोखे  बंद करते हैं,

आप जब सपनों में आते हैं,
भर के बाहों में,माथा चूम लेते हैं,
उस मीठे-से अहसास से,
पलकें उठा,हम जाग जाते हैं,
हम जाग जाते हैं,

बून्दनिया छत पे ताल धरती हैं,
छम,छम,रुनझुन गीत गाती हैं,
पहाडी झरने गिरते बहते  हैं,
हम सर अपना तकिये में छुपाते हैं,
सर अपना तकिये में छुपाते हैं..

9 टिप्‍पणियां:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

दोनों कलाकृतियां बड़ी ही सुन्दर हैं.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

दोनों कलाकृतियां बड़ी ही सुन्दर हैं.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

दोनों कलाकृतियां बड़ी ही सुन्दर हैं.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

शत पोस्ट पर शत शत शुभकामनायें। प्रकृति को आँख बन्द कर मन में समेट लेने की हमारी चाह क्यों न प्रकृति में समा जाने की ही हो जाये।

Arvind Mishra ने कहा…

यह हुयी न कोई बात ०सुखद अहसास !

संजय भास्‍कर ने कहा…

बड़ी ही सुन्दर कलाकृतियां
शतकीय पोस्ट के लिए बहुत बहुत शुभकामनायें।

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...१००वीं पोस्ट की बधाई..

दिगम्बर नासवा ने कहा…

उफ़! कितना सताते हैं,
जब याद आते है,
वो दिन कुछ भूले,भूले-से,
ज़हन में छाते जाते हैं,..

भूले बिसरे पल हमेशा गुदगुदाते हैं ... जब आते हैं तो वहीं बस जाते हैं ...
१०० पोस्ट की बधाई ...

abhi ने कहा…

:)

सेंचुरी पोस्ट की बधाई!! :)