गुरुवार, 24 अक्तूबर 2013

पलक भी ना झपकी

जिस रात की,चाहते थे, सेहर ही  ना हो,
पलक भी ना झपकी ,बसर हो गयी! 

उस  की पैरहन पे सितारे जड़े थे,
नज़र कैसे  उतारते ,सुबह हो गयी!

झूम के खिली थी रात की रानी,
साँस भी ना ली ,खुशबू फना  हो गयी...

जुगनू ही जुगनू,क्या नज़ारे थे,तभी,
निकल  आया  सूरज,यामिनी छल   गयी!