बुधवार, 18 जून 2014

अरसा बीता..



लम्हा,लम्हा जोड़ इक दिन बना,
दिन से दिन जुडा तो हफ्ता,
और फिर कभी एक माह बना,
माह जोड़,जोड़ साल बना..
समय ऐसेही बरसों बीता,
तब जाके उसे जीवन नाम दिया..
जब हमने  पीछे मुडके देखा,
कुछ ना रहा,कुछ ना दिखा..
किसे पुकारें ,कौन है अपना,
बस एक सूना-सा रास्ता दिखा...
मुझको किसने कब था थामा,
छोड़ के उसे तो अरसा बीता..
इन राहों से जो  गुज़रा,
वो राही कब वापस लौटा?

 

कुछ  कपडे  के  तुकडे ,कुछ  जल  रंग  और  कुछ  कढ़ाई .. इन्हीं के संयोजन से ये भित्ती चित्र बनाया है.